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ऐसे लोगों को क्या कहिये?

मन की बात
मन की बात
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सेना पर राजनीति थमती नजर नहीं आ रही। विपक्ष ही नहीं, सत्ता पक्ष भी इस गैर जिम्मेदार आचरण से बाज नहीं आ रहा। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने सर्जिकल स्ट्राइक के सबूत मांगे, तो अब कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी प्रधानमंत्री पर सैनिकों के ‘खून की दलाली’ करने का आरोप लगा रहे हैं। उधर, रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर को भाजपाई सम्मानित कर रहे हैं, मानो उन्होंने ही नियंत्रण रेखा के पार जाकर पराक्रम दिखाया हो। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बेशक अपने मंत्रियों और नेताओं को इस मसले में राजनीति नहीं करने की नसीहत दे चुके हैं, लेकिन लखनऊ में ‘रावण दहन का साक्षी’ बनने के उनके फैसले को उत्तर प्रदेश के आगामी विधानसभा चुनावों से ही जोड़ कर देखा गया। कांग्रेसनीत संप्रग शासन में भी ऐसे ही सर्जिकल स्ट्राइक का दावा करते हुए तत्कालीन रक्षा मंत्री शरद पवार भी अब बता रहे हैं कि हमने तो उनका प्रचार कर राजनीतिक लाभ उठाने की कोशिश नहीं की थी। कहना नहीं होगा कि उड़ी पर आतंकी हमले के जवाब में भारतीय सेना द्वारा पीओके में की गयी सर्जिकल स्ट्राइक के बाद सेना पर हो रही यह राजनीति बेहद गैर जिम्मेदार और खतरनाक दिशा की ओर बढ़ रही है। सेना हमेशा ही सरहद की सुरक्षा और राष्ट्रीय हित में सजग-सक्रिय रहती है। उसे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि केंद्र में किसकी सरकार है या फिर राज्यों में कौन सत्तासीन है। बेशक सेना के बड़े फैसलों में केंद्र में सत्तारूढ़ राजनीतिक नेतृत्व की भूमिका रहती है, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि सेना के पराक्रम को वह अपनी उपलब्धि के तौर पर प्रचारित करे।
यह अंतहीन बहस का मुद्दा हो सकता है कि सेना पर राजनीति की शुरुआत किसने की क्योंकि देश के लिए जान न्योछावर करने को तत्पर रहने वाले जवानों के पराक्रम और बलिदान से राजनीतिक लाभ उठाने के खतरनाक खेल में भाजपा, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी में से तो कोई पीछे नहीं रहना चाहता। सर्जिकल स्ट्राइक के तुरंत बाद राजनीतिक दलों ने जिस एक सुर में सेना के पराक्रम और पाक को सबक की सराहना की, उससे बेहद सकारात्मक संदेश गया था, लेकिन बड़बोले नेताओं ने जल्द ही उस पर सवालिया निशान लगा दिया। सैनिकों के खून की दलाली संबंधी टिप्पणी पर राहुल गांधी की निंदा करने वाले केजरीवाल की सर्जिकल स्ट्राइक के सबूत मांगने के लिए पाक में जैसी प्रशंसा हुई, उसी से साबित हो जाता है कि ऐसे बयान कहां, क्या असर डाल रहे हैं। राहुल गांधी के तल्ख बयान के बाद भाजपा प्रमुख अमित शाह ने जिस अंदाज में गांधी नेहरू परिवार पर हमला किया और जवाब में कांग्रेस ने राहुल की बात को सही ठहराने का प्रयास किया, उसमें राहुल-भक्ति ही ज्यादा दिखती है, देश-भक्ति नहीं। सेना पर राजनीतिकरण नई नही है यह ओछी राजनीति तब भी थी जब देश में कारगिल युद्ध हुआ। जब वीर जवान मातृभूमि की रक्षा के लिए रक्त बहा रहे थे और सारा देश उनके पीछे खडा था। तब भी कुछ को चुनाव में अपनी विजय देश की विजय से महत्वपूर्ण लगती थी, उन्ही राजनेताओ की आग्रणी पीढी ही आज भी इसका राजनीतिकरण करने से बाज नही आ रही है।
करगिल युद्ध के समय भी कोई सरकार और सेना की असफलता के प्रश्न पूछने की धमकी भरा लिखित भाषण बांच रही थी तो उसके चारण मणिशंकर अय्यर सुझाव दे रहे थे कि, ’’भारत को चाहिए कि कश्मीर पाकिस्तान के हवाले कर दे और बदले मे पेट्रोल और गैस की पाइपलाइन पाकिस्तान में से लाने की अनुमति ले लें।’’ मुलायम सिंह जिनके रक्षामंत्री काल में टाइगर हिल तक शत्रुओं को पहुचने की सुविधा मिली वे भी सरकार को लापरवाह बता रहे थे। राज्यसभा में माक्र्सवादी सदस्य अशोक मिश्र कश्मीर में भारतीय सेना को कब्जा करने गयी आक्रमणकारी सेना बता रहे थे।
लेकिन आज असहिष्णुता पर अपने अवार्ड लौटाने वाले बुद्धजीवी, अपनी डिग्रियॅा वापस करने वाले सगंठन कहॅा है? आज इस विषय पर चुपी साधे हुए क्यों है? आज सीमा पर डटे जवानो को असहिष्णुता नही महसूस हो रही होगी कि उनके ही देश के कुछ बुद्धजीवी वर्ग के लोग वोट बैंक के चक्कर में अपनी ही सेना पर प्रश्नचिन्ह लगा रहे है। जितनी तत्परता से उन्होने अपने देश की सरकार और सेना को कटघरे में खड़ा किया है उतना विरोध तो आक्रमणकारी पाकिस्तान ने भी नहीं किया। उन्होने न तो पाकिस्तानी अत्याचार के विरूद्ध कुछ बोला और न ही पाकिस्तानी आतंकवाद से पीड़ित निर्दोष सैनिकों की शहादत लिए कभी कदम बोला होगा परन्तु उनके लिए देशहित नहीं राजनैतिक विरोध जताना यही उनकी अहम भूमिका है।
आज जब युद्ध की तकनीक बदल गयी है। अब केवल सेना और सेनापति ही नहीं लड़ते वरन् सारा देश युद्ध करता है। इसी को सम्पूर्ण युद्ध कहा जाता है। ऐसे में शत्रु की अपरोक्ष सहायता करने वालों को पहचान कर उनसे सावधान रहना आवश्यक हो गया है क्योकि केजरीवाल राहुल गांधी सजय निरूपम जैसे राजनेता पाक के लिए तो हीरो बन गये है लेकिन ये सही मायने में देशद्रोही ही है जिन्हे ये समझ में नही आता कि वे अपने विरोधी दल के साथ साथ अपनी उस सेना पर दोषारोपण कर रहे है जिसके हम पर कई कर्ज है अगर हम इस खुली हवा में सांस ले रहे है वो देन भी उनकी ही है अपने घरो में सुख चैन से अगर बैठे है तो उसकी आजादी भी हमे इन्ही जवानो ने दी है हमें आजादी भीख में नहीं मिली है हमारे सैन्य जवानों ने ये भी छीन कर ली है। हर हिन्दुस्तानी का फर्ज है और कर्ज है कि अपने सिपाहियों की इज्जत करें उन्हे हमेशा गौरवान्वित करते रहें। हम उन्हे कुछ नहीं दे सकते लेकिन हम उनकी शहादत पर गर्व तो कर सकते हैं। इन राजनेताओं पर चार लाइने याद आती हैः
ऐ््! वतन चलाने वालों ये वतन न बेच देना,
ये धरती ये चमन न बेच देना।
शहीदों ने जान दी है वतन के वास्ते ,
शहीदों का कफन न बेच देना।।

Deeksha Mishra

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