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सिस्टम का राम नाम सत्य

मन की बात
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जिन गरीबों के लिए योजनाएं बनायी जाती है। जिसके लिए बडे़-बडें नेता, अधिकारी उनकी हक की बातें करते नहीं थकते। देश में गरीबों के नाम पर करोड़ो अरबों के वारे- न्यारे होते है। उन्ही गरीबों को योजनाओं से वंचित रहना पड़ता है। जब चुनाव आते है तो यहीं गरीब चुनावी मुद्दे के रूप में उभरते है और चुनाव खत्म होने के बाद इन्हे कोई पूछता तक नहीं।

जहां यूपी की सपा सरकार ने न जाने कितने वादे किये होंगे,रोज अखबारों में एक या दो पन्ने इनकी योजनाओं से पटे रहते है। लेकिन ये योजनाएं जमीनी स्तर पर कितनी कारगर है। इसका एक उदाहरण शुक्रवार को महोबा के थाना कवरई के बंगालीपुर मुहाल निवासी रामकली का प्रसव होने पर साफ दिखा। जब वह दर्द से करहा रही थी तो उसके परिजनों ने समाजवादी एंबुलेस के नंबर पर कई बार फोन लगाया किंतु वह नहीं उठा। असुरक्षित प्रसव के बाद जच्चा- बच्चा दोनां की मौत हो गयी। उस दर्द की, उस पीड़ा की, उस वेदना की कल्पना मात्र से रोम-रोम सिहर उठता है, ये 21वीं सदी का वो हिन्दुस्तान है जो चांद सितारों पर जाने की बातें करता है, मंगलयान भेजता है लेकिन एक गरीब को एंबुलेंस गाड़ी तक मुहैय्या नहीं करवा पाता, ये पूरे सिस्टम का राम नाम सत्य नहीं तो भला और क्या है!

यही लगता है कि जिनके पास सुविधा है, उन्हे सुविधाएं देने से क्या फायद और जिनके पास सुविधाएं नहीं है उनतक पहुंचाने के लिए क्या व्यवस्था की गयी है जिन गरीबों के लिए योजनाएं बनायी जाती है। जिसके लिए बडे़-बडें नेता, अधिकारी उनकी हक की बातें करते नही थकते। देश में गरीबों के नाम पर करोड़ो अरबों के वारे- न्यारे होते है। उन्ही गरीबों को योजनाओं से वंचित रहना पड़ता है।

जब चुनाव आते है तो यहीं गरीब चुनावी मुद्दे के रूप में उभरते है और चुनाव खत्म होने के बाद इन्हे कोई पूछता तक नहीं।

जहां यूपी की सपा सरकार ने न जाने कितने वादे किये होंगे,रोज अखबारों में एक या दो पन्ने इनकी योजनाओं से पटे रहते है। लेकिन ये योजनाएं जमीनी स्तर पर कितनी कारगर है। इसका एक उदाहरण शुक्रवार को महोबा के थाना कवरई के बंगालीपुर मुहाल निवासी रामकली का प्रसव होने पर साफ दिखा। जब वह दर्द से करहा रही थी तो उसके परिजनों ने समाजवादी एंबुलेस के नंबर पर कई बार फोन लगाया किंतु वह नहीं उठा। असुरक्षित प्रसव के बाद जच्चा- बच्चा दोनां की मौत हो गयी।

उस दर्द की उस पीड़ा की उस वेदना की कल्पना मात्र से रोम रोम सिहर उठता है ये 21वीं सदी का वो हिन्दुस्तान है जो चांद सितारों पर जाने की बातें करता है मंगलयान भेजता है लेकिन एक गरीब को एंबुलेंस गाड़ी तक मुहैय्या नहीं करवा पाता ये पूरे सिस्टम का राम नाम सत्य नहीं तो भला और क्या है!
यही लगता है कि जिनके पास सुविधा है, उन्हे सुविधाएं देने से क्या फायदाऔर जिनके पास सुविधाएं नहीं है उनतक पहुंचाने के लिए क्या व्यवस्था की गयी है! सरकार योजनाएं तो बहुत बनाती है लेकिन वे कितने समय तक चलेगी इसका संज्ञान नहीं लेती।
सरकारें या उनके नेता या सामाजिक अधिकारी स्मार्ट गांव का दिवा स्वप्न तो दिखाते है, लेकिन गांवो को स्मार्ट बनाने वाले संसाधनो से उन्हे वंचित रखते हैं। सरकारें गरीब किसानों को लैपटॅाप या स्मार्टफोन से लुभाने का प्रयास हरदम करती है, लेकिन क्या उन्होने कभी गरीबों से पूछा तुम्हे क्या चाहिए अगर पूछा होता तो वे केवल यही कहते कि उन्हे दो जून की रोटीसिर छुपाने के लिए छत और बीमार होने पर आवश्यक उपचार की जरूरत है।

Deeksha Mishra
JIMMC Kanpur

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