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अगर ये कहे कि टेक्नालॅाजी ने हिन्दी की पब्लिकसिटी करने में अपनी अहम भूमिका निभायी है तो यह अतिश्योक्ति न होगा, जिस तरह सोशल नेटवर्किंग साइट्स की दुनिया में अब हिन्दी ने दखल देना शुरू कर दिया है, चाहे फेसबुक हो या ट्विटर या फिर वाट्सएप लोग गूगल इनपुट का सहारा लेकर हिन्दी में टाइप करने लगे है और उन्हे हिन्दी में टाइप करने में आनन्द भी आने लगा है और उन्हे इसमें कोई दिक्कत भी नहीं है।
यूजर्स को अपने भावों को प्रकट करने के लिए हिन्दी सबसे अच्छी भाषा लगती है और सोशल प्लेटफार्म में हिन्दी लिखने वालों को रिस्पांस ही अच्छा खासा मिलता है। कविता हो या कहानी हो लोग उसे अपनी ही मातृभाषा में पढ़ने में ज्यादा सहज होते है और उनके दिलों को छूती भी है।
पहले के कवियों की हिन्दी किताबों को आज के युवा पढ़ने में दिलचस्पी नहीं लेते हैं क्यांकि उनकी हिन्दी भाषा अच्छी खासी कठिन होती है। लेकिन बदलते दौर के साथ न सिर्फ नई हिन्दी बल्कि नए कलेवर में रची बसी नई हिन्दी पर सोच समझकर काम किया गया है। ताकि नए पाठकों तक उसी रूप में पहुंच सकें, जिस रूप में वे चाहते हैं।
हिन्दी के प्रचार प्रसार का श्रेय ऑनलाइन बुक स्टोर्स को भी जाता है। जहां पर अब लोग हिन्दी की किताबों को भी खरीद सकते है। आज भी युवाओं को मधुशाला, गोदान, रश्मिरथी लुभा रही है। अॅानलाइन किताबों की बिक्री में युवाओं का बड़ा हाथ है। 20 से 45 आयु वर्ग के ही खरीददार अधिक है। देश के ग्रामीण इलाकों में हिन्दी की किताबों की अच्छी-खासी मांग पैदा हो रही है।
अब तो हिन्दी की किताबें ई-बुक प्लेटफार्म पर भी पहुंच चुकी है। अब हिन्दी की किताबों के लिए ऐप लान्च कर दिये गये है। जिसकों लाखों लोग डाउनलोड करते है और ऐप भी मुफ्त है। ऐप के जरिए सोशल प्लेटफार्म में ये किताबें शेयर भी खूब की जा रही है। वहीं ई-बुक्स के कारण लोगों को किताबें खरीद के पढ़ने की जरूरत नहीं होती है। कई लोग तो पहले किताबें खरीद लेते थें लेकिन उन्हे समय नहीं मिलता था कि वे उन्हे पढ़ सके। लेकिन जब से स्मार्टफोन में किताबें पूरी सेव हो जाती है, तब से लोगों में पढ़ने की चाह भी बढ़ी है। एक तरह से देखे तो डिजिटलाइजेशन का हिन्दी को उसका सम्मान वापस दिलाने में बहुत बड़ा हाथ है।
ऐपस
ऽ हिन्दी स्टोरी बुक
ऽ हिन्दी पुस्तकालय
ऽ मुंशी प्रेमचन्द्र की कहानियां
ऽ स्वामी विवेकानन्द की कहानियां
Deeksha Mishra
JIMMC Kanpur
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