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अभिव्यक्ति का आधार जूता या स्याही क्यों?

मन की बात
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एक बार फिर मुख्यमंत्री स्तर के नेता पर जूता फेंका गया राजनीति में यह कोई नया नहीं है। मगर इस तरह से पत्रकारांे से चर्चा के दौरान नेता पर इस तरह से जूता फेंकना अभिव्यक्ति का एक नया माध्यम बनता जा रहा है। मगर ये सवाल भी उठता है कि यह अपने विचारों को प्रकट करने का कौन सा तरीका है। आखिर क्या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में यह भी शामिल है कि आप मुंह से कुछ न कहें मगर किसी पर भी जूता या स्याही जब मर्जी आये उछाल दें। यदि ऐसा है तो इसके लिये सरकार को सख्त कदम उठाने चाहिए।
बीते 9 अपै्रल को दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल आडॅ-ईवन योजना को लेकर दिल्ली सचिवालय में प्रेस कांफ्रेस कर रहे थ,े तभी वेद प्रकाश नाम के एक युवक ने उन पर जूता फंेक दिया। कांफ्रेस में साथ बैठे अन्य लोगों की वजह से जूता उन्हे नहीं लगा। लेकिन इस तरह का विरोध कहां तक जायज है यह बात भी बेहद महत्वपूर्ण है कि किसी पद की गरिमा को एक आम आदमी कैसे ठेस पहुंचा सकता है?
अरविंद केजरीवाल पर पहले भी ऐसे कुछ हमले होते रहे है पिछली बार छत्रसाल स्टेडियम में अॅाडईवन रूल की सफलता पर केजरीवाल भाषण दे रहे थे। उसी दौरान एक युवती ने मंच के नीचे से केजरीवाल पर स्याही फंेक दी थी। आरोपी ने दावा किया कि अनियमितता में संलिप्त लोगों के खिलाफ कार्रवाई नहीं किये जाने के कारण वह केजरीवाल से क्षुब्ध था। बल्कि वह कानूनी प्रक्रिया से अपनी शिकायतों को रख सकता था। उसे संविधान का पालन करना चाहिए था। वह मुख्यमंत्री कार्यालय के अलावा अन्य विभाग भी उसकी शिकायत सुन सकता था। इस तरह का अशोभनीय कदम उठाने के बजाए उसे दूसरे पदाधिकारियों से संपर्क करना चाहिए था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
Deeksha Mishra

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