ज्ञान का स्थल कहे जाने वाले कॅालेज, विश्वविद्यालय आज राजनीति के अखाड़े बन गये हैं। उन्हे प्रत्येक राजनेता अच्छा प्लेटफार्म समझकर प्रयोग करता है और अपने विपक्ष पर हमला बोलता है। चाहे वो एफटीआइआइ पुणे हो या हैदाराबाद विश्वविद्यालय या जेएनयू हो। यहां पर नेता तब नहीं इतने सक्रिय होते जब कोई कार्यक्रम हो, वे सक्रियता तो तब दिखाते हंै जब वहां कोई बवाल हो और उन्हे अपने विपक्षी पर हमला बोलने का मौका मिल रहा हो। राजनेता इन ज्ञान के मंदिरों को चूल्हा समझकर वहंा राजनीति की रोटियंा सेकने चले आते हैं। चाहे फिर वो देशविरोधी नारे लगा रहे छात्र- छात्राएं ही क्यों न हेा? वे उन्हे भी समर्थन देने पंहुच ही जाते हंै, उस समय शायद वे देशभक्ति को दरकिनारे करके राजनीति को सर्वोपरि मानते हंै। बड़ा अजीब लगता है जिस देश में गुरूदासपुर, पठानकोट हमले हुए हो और उनमंे देश के वीर जवानों ने अपनी जान गवंा दी हो तो उनके लिये किसी विवि में वरसी नहीं मनायी जाती हंै, लेकिन इस देश में एक आंतकवादी की वरसी मनायी जाती है। उनकी फंासी देने का विरोध किया जाता है। वाह! क्या देश है हमारा?जहां विवि में छात्र -छात्राएं इसलिये अपनी पढ़ाई छोड़कर भूख- हड़ताल करते हंै, क्यांेकि उन्हे अपने चेयरमैन पंसद नहीं हैं। बल्कि यह काम तेा मैनेजमैन्ट का है, न कि विद्यार्थियों का। लेकिन उस पर भी राजनीति करने वाले नेता पंहुच कर वहंा राजनीति करते हंै और केन्द्र सरकार पर निशाना साधते हैं। वहीं दूसरी ओर किसी छात्र की आत्महत्या पर सियासत गरमा जाती है। चाहे खुदखुशी करने वाले छात्र ने खुद अपने सुसाइड नोट पर ये लिखा हो कि ’’मै अपनी मर्जी से आत्महत्या कर रहा हूं, इसमंे किसी का दोष नही हं,ै कृपया किसी को परेशान न किया जाए’’ उसकी बातों को तवज्जो नहीं दिया जाता। उसकी आत्महत्या को ऐसा दिखाया जाता है, जैसे आज पहली बार किसी छात्र ने आत्महत्या की हो। राजनेता उसके समर्थन के लिये उसके विवि पंहुच जाते है। वहंा भी वह केवल विद्यार्थियों को भड़काने का ही काम करते हैं और कुछ नहीं। उन्हे तो बस बाल मे खाल निकालनी हेाती है और गजब तेा तब होता है जब भारत माता के विरोध में छात्र -छात्राएं प्रदर्शन करते हंै।ं वे एक ऐसे अंातकवादी की वरसी मनाते हंै जिसने हमारे देश के मेरूदण्ड (संसद) को बर्बाद करने की कोशिश की होती है। उसका समर्थन विद्यार्थी यह कहकर करते हैं कि उसे फंासी की सजा गलत हुई थी।ये सुप्रीम कोर्ट का गलत निर्णय था ,उसके खिलाफ उनके पास कोई सबूत ही नही थे, फिर भी उसे फंासी दी गयी इसके साथ यह कहते हुए पाकिस्तान जिदंाबाद के नारे लगाते हैं। उस देशद्रोही नारांे पर भी राजनेता ये बोलते हंै कि हमारा संविधान मौलिक अधिकारों में हमें बोलने की स्वतंत्रता देता है, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता देता है तेा उन्हे क्यो रोका जा रहा है? जो उन पर प्रतिबन्ध लगा रहे हंै वे खुद देशद्रोही है। वहा रे ! राजनीति साम, दाम, दण्ड, भेद करके बना दिया देश को तूने अचेत। मानवता तेा हो गई कोसों दूर बस रह गया है राजनीति का खेल।
ज्ञान का स्थल कहे जाने वाले कॅालेज, विश्वविद्यालय आज राजनीति के अखाड़े बन गये हैं। उन्हे प्रत्येक राजनेता अच्छा प्लेटफार्म समझकर प्रयोग करता है और अपने विपक्ष पर हमला बोलता है। चाहे वो एफटीआइआइ पुणे हो या हैदाराबाद विश्वविद्यालय या जेएनयू हो। यहां पर नेता तब नहीं इतने सक्रिय होते जब कोई कार्यक्रम हो, वे सक्रियता तो तब दिखाते हंै जब वहां कोई बवाल हो और उन्हे अपने विपक्षी पर हमला बोलने का मौका मिल रहा हो। राजनेता इन ज्ञान के मंदिरों को चूल्हा समझकर वहंा राजनीति की रोटियंा सेकने चले आते हैं। चाहे फिर वो देशविरोधी नारे लगा रहे छात्र- छात्राएं ही क्यों न हेा? वे उन्हे भी समर्थन देने पंहुच ही जाते हंै, उस समय शायद वे देशभक्ति को दरकिनारे करके राजनीति को सर्वोपरि मानते हंै। बड़ा अजीब लगता है जिस देश में गुरूदासपुर, पठानकोट हमले हुए हो और उनमंे देश के वीर जवानों ने अपनी जान गवंा दी हो तो उनके लिये किसी विवि में वरसी नहीं मनायी जाती हंै, लेकिन इस देश में एक आंतकवादी की वरसी मनायी जाती है। उनकी फंासी देने का विरोध किया जाता है। वाह! क्या देश है हमारा?जहां विवि में छात्र -छात्राएं इसलिये अपनी पढ़ाई छोड़कर भूख- हड़ताल करते हंै, क्यांेकि उन्हे अपने चेयरमैन पंसद नहीं हैं। बल्कि यह काम तेा मैनेजमैन्ट का है, न कि विद्यार्थियों का। लेकिन उस पर भी राजनीति करने वाले नेता पंहुच कर वहंा राजनीति करते हंै और केन्द्र सरकार पर निशाना साधते हैं। वहीं दूसरी ओर किसी छात्र की आत्महत्या पर सियासत गरमा जाती है। चाहे खुदखुशी करने वाले छात्र ने खुद अपने सुसाइड नोट पर ये लिखा हो कि ’’मै अपनी मर्जी से आत्महत्या कर रहा हूं, इसमंे किसी का दोष नही हं,ै कृपया किसी को परेशान न किया जाए’’ उसकी बातों को तवज्जो नहीं दिया जाता। उसकी आत्महत्या को ऐसा दिखाया जाता है, जैसे आज पहली बार किसी छात्र ने आत्महत्या की हो। राजनेता उसके समर्थन के लिये उसके विवि पंहुच जाते है। वहंा भी वह केवल विद्यार्थियों को भड़काने का ही काम करते हैं और कुछ नहीं। उन्हे तो बस बाल मे खाल निकालनी हेाती है और गजब तेा तब होता है जब भारत माता के विरोध में छात्र -छात्राएं प्रदर्शन करते हंै।ं वे एक ऐसे अंातकवादी की वरसी मनाते हंै जिसने हमारे देश के मेरूदण्ड (संसद) को बर्बाद करने की कोशिश की होती है। उसका समर्थन विद्यार्थी यह कहकर करते हैं कि उसे फंासी की सजा गलत हुई थी।ये सुप्रीम कोर्ट का गलत निर्णय था ,उसके खिलाफ उनके पास कोई सबूत ही नही थे, फिर भी उसे फंासी दी गयी इसके साथ यह कहते हुए पाकिस्तान जिदंाबाद के नारे लगाते हैं। उस देशद्रोही नारांे पर भी राजनेता ये बोलते हंै कि हमारा संविधान मौलिक अधिकारों में हमें बोलने की स्वतंत्रता देता है, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता देता है तेा उन्हे क्यो रोका जा रहा है? जो उन पर प्रतिबन्ध लगा रहे हंै वे खुद देशद्रोही है। वहा रे ! राजनीति साम, दाम, दण्ड, भेद करके बना दिया देश को तूने अचेत। मानवता तेा हो गई कोसों दूर बस रह गया है राजनीति का खेल।
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